आमतौर पर माना जाता है कि कफ होने पर मीठा
खाने से नुकसान होता है। लेकिन अगर इस बार आपको कफ हो और आप चॉकलेट खाना
पसंद करते हों तो आपके पास इसे खाने का एक बेहतरीन बहाना है। जी हां,
वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि चॉकलेट का सेवन लगातार हो रही खांसी के लिए
अच्छा इलाज होता है। चलिये विस्तार से जानें क्या हैं इसके पीछे के तथ्य।
द डेली टेलीग्राफ की खबर के मुताबिक, ब्रिटेन की दवा बनाने वाली कंपनी एसईईके ने ‘कोका’ में एक ऐसे प्राकृतिक तत्व को खोज निकाला है जो गले में होने वाले खराश के कारणों को दूर करने की क्षमता रखता है। फिलहाल खराश को नियंत्रित करने वाली दवाओं जैसे कफ सिरप आदि में कोडिन नामक पदार्थ का उपयोग किया जाता है। अभी वैज्ञानिक ‘थियोब्रोमिन’ पर आधारित दवा बनाने में जुटे हुए हैं। इस विषय में उनका कहना है कि थियोब्रोमिन में लगातार खांसी उत्पन्न करने वाली वैगस तंत्रिकाओं में हो रही परेशानियों को दूर करने की क्षमता होती है। उनके अनुसार थियोब्रोमिन कोका से बने उत्पादों में काफी मात्रा में पाया जाता है।
शोध में अहम भूमिका निभाने वाले प्रोफेसर एलेन मॉरिस के अनुसार, 'फिलहाल बाजार में उपलब्ध नशा आधारित दवाओं जैसे कोडिन के नुकसान को देखते हुए हमें एक नशारहित दवा की बेहद जरूरत है, जिससे रोगियों में जल्दी सुधार हो सके। मॉरिस के अनुसार, 'वैसे तो सैद्धांतिक रूप से यह तय हो चुका है कि एक डार्क चॉकलेट में काफी मात्रा में थियोब्रोमिन मिलता है मगर शोध में अभी भी इसकी सही खुराक तय होना बाकी है।
वहीं नेशनल हार्ट एंड लंग इंस्टीट्यूट के शोध के अनुसार कफ में चॉकलेट लेने से शुरुआत में 60 प्रतिशत तक राहत मिलती है। शोधकर्ताओं ने भी बताया कि चॉकलेट में मौजूद कोको नामक तत्व तेज और लंबे समय तक रहने वाले कफ को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्होंने भी पाया कि कोको में मौजूद थियोब्रोमाइन संवेदी तंत्रिकाओं को ब्लॉक कर देता है। इससे कफ के लक्षणों में कमी आती है।
हालांकि वे यह भी कहते हैं कि यह इसका पूर्ण इलाज नहीं है और एक बार इलाज के बाद मरीज में इसके लक्षण दोबारा आ सकते हैं। अध्ययन में यह बात सामने आई कि 12 में एक व्यक्ति हफ्ते में एक बार कफ का शिकार होता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस तरह के लोगों के लिए इन लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए चॉकलेट लाभदायक साबित हो सकता है।
द डेली टेलीग्राफ की खबर के मुताबिक, ब्रिटेन की दवा बनाने वाली कंपनी एसईईके ने ‘कोका’ में एक ऐसे प्राकृतिक तत्व को खोज निकाला है जो गले में होने वाले खराश के कारणों को दूर करने की क्षमता रखता है। फिलहाल खराश को नियंत्रित करने वाली दवाओं जैसे कफ सिरप आदि में कोडिन नामक पदार्थ का उपयोग किया जाता है। अभी वैज्ञानिक ‘थियोब्रोमिन’ पर आधारित दवा बनाने में जुटे हुए हैं। इस विषय में उनका कहना है कि थियोब्रोमिन में लगातार खांसी उत्पन्न करने वाली वैगस तंत्रिकाओं में हो रही परेशानियों को दूर करने की क्षमता होती है। उनके अनुसार थियोब्रोमिन कोका से बने उत्पादों में काफी मात्रा में पाया जाता है।
शोध में अहम भूमिका निभाने वाले प्रोफेसर एलेन मॉरिस के अनुसार, 'फिलहाल बाजार में उपलब्ध नशा आधारित दवाओं जैसे कोडिन के नुकसान को देखते हुए हमें एक नशारहित दवा की बेहद जरूरत है, जिससे रोगियों में जल्दी सुधार हो सके। मॉरिस के अनुसार, 'वैसे तो सैद्धांतिक रूप से यह तय हो चुका है कि एक डार्क चॉकलेट में काफी मात्रा में थियोब्रोमिन मिलता है मगर शोध में अभी भी इसकी सही खुराक तय होना बाकी है।
वहीं नेशनल हार्ट एंड लंग इंस्टीट्यूट के शोध के अनुसार कफ में चॉकलेट लेने से शुरुआत में 60 प्रतिशत तक राहत मिलती है। शोधकर्ताओं ने भी बताया कि चॉकलेट में मौजूद कोको नामक तत्व तेज और लंबे समय तक रहने वाले कफ को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्होंने भी पाया कि कोको में मौजूद थियोब्रोमाइन संवेदी तंत्रिकाओं को ब्लॉक कर देता है। इससे कफ के लक्षणों में कमी आती है।
हालांकि वे यह भी कहते हैं कि यह इसका पूर्ण इलाज नहीं है और एक बार इलाज के बाद मरीज में इसके लक्षण दोबारा आ सकते हैं। अध्ययन में यह बात सामने आई कि 12 में एक व्यक्ति हफ्ते में एक बार कफ का शिकार होता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस तरह के लोगों के लिए इन लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए चॉकलेट लाभदायक साबित हो सकता है।