फास्ट फूड की शक्ल में स्लो पाईजन का डोज आज हर टी.वी. चैनल और पत्र-पत्रिकाओं, समाचार पत्रों में बहुतायत से दिया जा रहा है. टीवी पर आने वाला हर चौथा विज्ञापन इजी टू ईंट का ही होता है.
इस तरह आज इजी टू ईट का चलन दिनों दिन बढ़ता जा रहा हैं. जैसे पांच मिनट में इंस्टेट मसाले से पालक-पनीर, मटर-पनीर, खीर आदि बनाना, मैगी मैजिक मसाले से आलू-गोभी सब्जी का टेस्ट बढ़ाना, आदि. इसी तरह इंस्टेट पैकेट चाउमीन मंचूरियन मसाला आदि के भी विज्ञापन आ रहे हैं, जिससे आम आदमी प्रभावित भी हो रहा हैं.
आज हर व्यक्ति पांच से दस मिनट में स्वाद भरा भोजन करना चाहता हैं. हमारे महानायक बिग बी व काजोल आदि भी मैगी मसाला व नूडल्स का विज्ञापन कर लोगों को लुभा रहे हैं और मात्र कुछ पैसे के लिए इस खतरनाक खाद्य सामग्री का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं.
आजकल के बच्चे जो टीवी पर देखते हैं. वही खाने की जिद करते हैं. चाहे वह उनके स्वास्थ्य के लिए अच्छा हो या न हो. विज्ञापनों में मेक्डोनल्ड का पिज्जा बर्गर व केएफसी के चिकन फ्राई बच्चों के साथ साथ बड़ो को भी आकर्षित कर रहे हैं. आजकल तो पिज्जा बर्गर खाना आधुनिकता में आने लगा हैं. जो लोग इन्हें नहीं खाते हैं, वे सब गांव के टेपे कहलाने लगते हैं.
भारत में आयी हर बहुराष्ट्रीय कम्पनी अपने फास्ट फूड में एमएसजी मोनोसोडियम ग्लूटामेट का इस्तेमाल कर रही हैं. चीनी भोजन का स्वाद तो इसके बिना अधूरा ही रहता है, लेकिन जो लोग इसे खाते हैं. उनके लिए ये जहर के समान हैं.
आज इस भागदौड़ वाले जीवन में जहां महिला व पुरूष दोनों ही कमाते हैं, किंतु उनको स्वयं के लिए पौष्टिक भोजन बनाने व खाने का समय नहीं रहता हैं. इसलिए वे इंस्टेट फूड का उपयोग करते हैं. किंतु आप जब भी इंस्टेट फूड खरीदते हैं. तो उसमें शामिल सभी चीजों को पढ़ते ही होंगे. बहुत से इंस्टेट फूड में लिखा रहता है कि इसे 24 महीने तक उपयोग करें.
कभी आपने यह सोचा है कि इसे 24 महीने तक कैसे संरक्षित करते होंगे. इसमें क्या वस्तु मिलाई जाती हैं जिससे यह इतने दिनों तक खाने योग्य रह पाती हैं?
इंस्टेट फूड को संरक्षित करने के लिए एमएसजी अर्थात मोनोसोडियम ग्लूटामेट मिलाया जाता हैं. इसे अजीनोमोटो भी कहते हैं यह एक समुद्री शैवाल है, जो नमक की तरह ही होता हैं. चीनी व्यंजन के मसालों व फास्ट फूड में इसका अत्यधिक उपयोग किया जाता हैं, जैसे मंचूरियन चाउमिन, हक्का नूडल्स, बर्गर पिज्जा, टमाटर सास, रेडीमेड अचार, चटनी, मेक्रोनी मसाला, पनीर मसाला, पालक-पनीर, लहसुन अदरक का पेस्ट.
अलग अलग फ्लेवर बनाने के लिए इन सभी का उपयोग किया जाता है. साथ ही स्नेक्स आलू की चिप्स, बिंगो हिप्पों आदि बच्चों की पसंदीदा वस्तुओं में भी एमएसजी का छिड़काव किया जाता हैं. इसी तरह कोल्ड स्टोरेज की सब्जियों पर भी इसका स्प्रे किया जाता हैं.
दुनिया के अधिकांश देशों में एमएसजी के निर्माण, विक्रय एवं उपयोग पर प्रतिबंध है क्योंकि यह मनुष्य के गुर्दों को बड़े पैमाने पर क्षति पहुंचाता है.
लेकिन भारत में इस पर आज तक कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया हैं. भारत में आयी बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने उत्पादों में धड़ल्ले से एमएसजी का उपयोग कर रही हैं.
इसी कारण से भारत में लीवर और किडनी की बीमारियाँ फ़ैल रही हैं और शीघ्र ही हमारे बच्चों में लीवर व किडनी की बीमारी के बड़े पैमाने पर संक्रमण और महामारी की आशंका को नकारा नहीं जा सकता हैं. अतः आप सभी से अनुरोध है कि किसी भी स्थिति में इस एमएसजी या मोनोसोडियम ग्लूटामेट के धीमे जहर के प्रयोग से बनी किसी भी खाद्य सामग्री का उपयोग नहीं करें और ध्यान रखें कि आपके बच्चे भी इन्हें नहीं खाएं.
इसके लिए आपको अगर बच्चों के स्कूल की केन्टीन को भी चेक करना पड़े, तो भी न हिचकिचायें और स्कूल या कॉलेज प्रशासन से इन्हें बंद करने को कहें.
आप सभी से भी मेरा अनुरोध है कि इन टी.वी., समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं के भ्रामक और खतरनाक इजी टू ईट की खाद्य सामग्री के विज्ञापनों के जाल में फंस कर अपने बच्चों के स्वास्थ्य को बर्बाद न करें.
इस तरह आज इजी टू ईट का चलन दिनों दिन बढ़ता जा रहा हैं. जैसे पांच मिनट में इंस्टेट मसाले से पालक-पनीर, मटर-पनीर, खीर आदि बनाना, मैगी मैजिक मसाले से आलू-गोभी सब्जी का टेस्ट बढ़ाना, आदि. इसी तरह इंस्टेट पैकेट चाउमीन मंचूरियन मसाला आदि के भी विज्ञापन आ रहे हैं, जिससे आम आदमी प्रभावित भी हो रहा हैं.
आज हर व्यक्ति पांच से दस मिनट में स्वाद भरा भोजन करना चाहता हैं. हमारे महानायक बिग बी व काजोल आदि भी मैगी मसाला व नूडल्स का विज्ञापन कर लोगों को लुभा रहे हैं और मात्र कुछ पैसे के लिए इस खतरनाक खाद्य सामग्री का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं.
आजकल के बच्चे जो टीवी पर देखते हैं. वही खाने की जिद करते हैं. चाहे वह उनके स्वास्थ्य के लिए अच्छा हो या न हो. विज्ञापनों में मेक्डोनल्ड का पिज्जा बर्गर व केएफसी के चिकन फ्राई बच्चों के साथ साथ बड़ो को भी आकर्षित कर रहे हैं. आजकल तो पिज्जा बर्गर खाना आधुनिकता में आने लगा हैं. जो लोग इन्हें नहीं खाते हैं, वे सब गांव के टेपे कहलाने लगते हैं.
भारत में आयी हर बहुराष्ट्रीय कम्पनी अपने फास्ट फूड में एमएसजी मोनोसोडियम ग्लूटामेट का इस्तेमाल कर रही हैं. चीनी भोजन का स्वाद तो इसके बिना अधूरा ही रहता है, लेकिन जो लोग इसे खाते हैं. उनके लिए ये जहर के समान हैं.
आज इस भागदौड़ वाले जीवन में जहां महिला व पुरूष दोनों ही कमाते हैं, किंतु उनको स्वयं के लिए पौष्टिक भोजन बनाने व खाने का समय नहीं रहता हैं. इसलिए वे इंस्टेट फूड का उपयोग करते हैं. किंतु आप जब भी इंस्टेट फूड खरीदते हैं. तो उसमें शामिल सभी चीजों को पढ़ते ही होंगे. बहुत से इंस्टेट फूड में लिखा रहता है कि इसे 24 महीने तक उपयोग करें.
कभी आपने यह सोचा है कि इसे 24 महीने तक कैसे संरक्षित करते होंगे. इसमें क्या वस्तु मिलाई जाती हैं जिससे यह इतने दिनों तक खाने योग्य रह पाती हैं?
इंस्टेट फूड को संरक्षित करने के लिए एमएसजी अर्थात मोनोसोडियम ग्लूटामेट मिलाया जाता हैं. इसे अजीनोमोटो भी कहते हैं यह एक समुद्री शैवाल है, जो नमक की तरह ही होता हैं. चीनी व्यंजन के मसालों व फास्ट फूड में इसका अत्यधिक उपयोग किया जाता हैं, जैसे मंचूरियन चाउमिन, हक्का नूडल्स, बर्गर पिज्जा, टमाटर सास, रेडीमेड अचार, चटनी, मेक्रोनी मसाला, पनीर मसाला, पालक-पनीर, लहसुन अदरक का पेस्ट.
अलग अलग फ्लेवर बनाने के लिए इन सभी का उपयोग किया जाता है. साथ ही स्नेक्स आलू की चिप्स, बिंगो हिप्पों आदि बच्चों की पसंदीदा वस्तुओं में भी एमएसजी का छिड़काव किया जाता हैं. इसी तरह कोल्ड स्टोरेज की सब्जियों पर भी इसका स्प्रे किया जाता हैं.
दुनिया के अधिकांश देशों में एमएसजी के निर्माण, विक्रय एवं उपयोग पर प्रतिबंध है क्योंकि यह मनुष्य के गुर्दों को बड़े पैमाने पर क्षति पहुंचाता है.
लेकिन भारत में इस पर आज तक कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया हैं. भारत में आयी बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने उत्पादों में धड़ल्ले से एमएसजी का उपयोग कर रही हैं.
इसी कारण से भारत में लीवर और किडनी की बीमारियाँ फ़ैल रही हैं और शीघ्र ही हमारे बच्चों में लीवर व किडनी की बीमारी के बड़े पैमाने पर संक्रमण और महामारी की आशंका को नकारा नहीं जा सकता हैं. अतः आप सभी से अनुरोध है कि किसी भी स्थिति में इस एमएसजी या मोनोसोडियम ग्लूटामेट के धीमे जहर के प्रयोग से बनी किसी भी खाद्य सामग्री का उपयोग नहीं करें और ध्यान रखें कि आपके बच्चे भी इन्हें नहीं खाएं.
इसके लिए आपको अगर बच्चों के स्कूल की केन्टीन को भी चेक करना पड़े, तो भी न हिचकिचायें और स्कूल या कॉलेज प्रशासन से इन्हें बंद करने को कहें.
आप सभी से भी मेरा अनुरोध है कि इन टी.वी., समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं के भ्रामक और खतरनाक इजी टू ईट की खाद्य सामग्री के विज्ञापनों के जाल में फंस कर अपने बच्चों के स्वास्थ्य को बर्बाद न करें.