▪ वाइटनिंग और क्लीनिंग एक बात नहीं होते हैं।
▪ टूथ वाइटनिंग एक रासायनिक क्रिया होती है।
▪ वाइटनिंग हर बीमारी का इलाज नहीं होती है।
▪ ब्लीचिंग के बाद रखें कई खास बातों का खयाल।
● दांतों की तुलना यूं ही मोतियों से नहीं की जाती। बेशक, चमचमाती मुस्कान पीले या भूरे दांतों से ज्यादा असर डालती है। और कई बार एक परफेक्ट मुस्कान हासिल करने के लिए आपको विशेषज्ञ की मदद भी लेनी पड़ती है। लेकिन, ऐसा करने से पहले आपके लिए कुछ बातो को जान लेना जरूरी होता है।
1) वाइटनिंग और क्लीनिंग एक नहीं :-
कई बार दांतों की सतह पर गंदगी जमा हो जाती है जिससे आपके दांत पीले नजर आने लगते हैं। इससे छुटकारा पाने के लिए आप डेंटल क्लीनिंग अथवा स्केलिंग करवा सकते हैं। इस धुंधलेपन को दूर करने के लिए वाइटनिंग ट्रीटमेंट की जरूरत नहीं होती।
2) टूथ वाइटनिंग यानी रासायनिक क्रिया :-
ब्लीचिंग अथवा टूथ वाइटनिग एक रासायनिक क्रिया है जिसमें पेरोक्साइड ग्रुप के तत्त्वों का इस्तेमाल किया जाता है। दांतों की सतह से संपर्क में आने के बाद ये तत्त्व फ्री-रेडिकल ऑक्सीजन का स्राव करते हैं, जो दांतों की बाहरी परत में प्रवेश कर रंग उत्पन्न करने वाले वर्णकों का ऑक्सीकरण कर देते हैं। इससे आपके दांतों का रंग चमक जाता है। इस क्रिया को डेंटिस्ट द्वारा किया जाता है। आप डॉक्टर द्वारा सुझायी गयी दवाओं से इस क्रिया को घर पर भी कर सकते हैं।
3) चमक की रफ्तार :-
दांत किस रफ्तार से चमकेंगे यह बात पूरी तरह से ट्रीटमेंट के प्रकार पर निर्भर करती है। अपनी मनपसंद चमक पाने के लिए आपको इसमें एक घंटे से लेकर कई सप्ताह तक का समय लग सकता है।
4) वाइटनिंग स्थायी नहीं :-
वाइटनिंग दांतों को स्थायी रूप से चमकदार नहीं बनाती। इसका असर एक वर्ष से लेकर अधिक से अधिक तीन वर्षों तक रह सकता है। कुछ सावधानियों और नियमित टच-अप से आप अपनी मुस्कान को लंबे समय तक बनाये रख सकते हैं।
5) वाइटनिंग के बाद देखभाल है जरूरी :-
ब्लीचिंग के बाद आपको कई बातों का खयाल रखने की जरूरत होती है आपको कुछ खास प्रकार के आहार से दूर रहना चाहिए। आपको चाय, कॉफी, वाइन, सोडा आदि के सेवन नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे आपके दांतों को नुकसान पहुंच सकता है। इसके साथ ही आपको धूम्रपान अथवा तंबाकू के उपयोग भी न करने की सलाह दी जाती है। इसके साथ ही आपको ब्रश और फ्लोसिंग के जरिये दांतों की सूक्ष्म देखभाल करनी चाहिए।
6) साइड इफेक्ट का खतरा नहीं :-
अगर ब्लीचिंग किसी विशेषज्ञ द्वारा पूरी सावधानी से की जाए तो इसके साइड इफेक्ट बेहद कम होते हैं। इसके साथ ही सेंसेटिव दांतों पर भी इसका बुरा असर बेहद कम होता है, जो कुछ घंटों से लेकर कुछ दिनों तक रह सकता है। कई बार ब्लीचिंग में इस्तेमाल होने वाले रसायन के मसूड़ों पर लगने से उनमें थोड़ी जलन हो सकती है।
7) हर किसी को नहीं जरूरत :-
यदि आपको डॉक्टर ने सलाह दी है।
यदि आप गर्भवती या स्तनपान करवाने वाली महिला हैं।
यदि आपके दांतों में कैविटी है, आपके दांतों में बहुत ज्यादा सेंसेटिविटी है, आपके मसूड़ों में तकलीफ है या आपको मुख संबंधी अन्य बीमारी है।
8) वाइटनिंग हर बीमारी का इलाज नहीं :-
किसी व्यक्ति के एनेमल अथवा डेंटिन (दांतों का निर्माण करने वाले उत्तक) विकृत हो जाते हैं। ऐसा बचपन में अधिक मात्रा में फ्लोराइड के सेवन करने के कारण हो सकता है। इसके अलावा बचपन में कुछ खास दवाओं का सेवन भी इसकी वजह हो सकता है। ऐसे मामलों में ब्लीचिंग कामयाब नहीं होती और व्यक्ति को वेनीर्स अथवा क्राउन जैसे विकल्पों के बारे में विचार करना पड़ता है। इनके बारे में अपने डेंटिस्ट से विचार करना जरूरी है।