रतौंधी होने पर सूरज ढलते ही रोगी को दूर
की चीजें धुंधली दिखाई देने लगती हैं। रात
होने पर रोगी को पास की चीजें भी
दिखाई देती है। रोगी तेज रोशनी में ही
थोडा़-बहुत देख पाता है।रोगी बिना
चश्में के कुछ नहीं देख पाता। चश्में से भी
रोगी को बहुत धुंधला दिखाई देता है।
बल्ब के चारों और रोगी को किरणें फूटती
दिखाई देती हैं। धूल-मिट्टी व धुएं के
वातावरण से गुजरने पर धुंधलापन अधिक बढ़
जाता है।
# रतौंधी(रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा ) का
कारण :-
============================
* रोगी की आँखों की जाँच के दौरान
पता चलता है कि आँखों का कॉर्निया
(कनीनिका) सूख-सा गया है और आई बॉल
(नेत्र गोलक) धुँधला व मटमैला-सा दिखाई
देता है। उपतारा (आधरिस) महीन छिद्रों
से युक्त दिखता है तथा कॉर्निया के पीछे
तिकोनी सी आकृति नजर आती है। आँखों
से सफेद रंग का स्त्राव होता है।
* नेत्रों के भीतरी भाग में स्थित रेटिना
दो प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर
बना होता है। कुछ कोशिकाएँ छड़ की
आकार की और कुछ शंकु के आकार की
होती हैं। इन कोशिकाओं में जो रंग कण
होते हैं, वे प्रकाश के प्रति संवेदनशील होते
हैं। इन छड़ कोशिकाओं में रोडोप्सीन
नामक एक पदार्थ पाए जाते है जो कि एक
संयुग्मी प्रोटीन होता है, यह पदार्थ
आप्सीन नामक प्रोटीन और रेटीनल नामक
अप्रोटीन तत्वों से मिलकर बना होता है।
अधिक समय तक प्रकाश रहने पर
रोडोप्सीन का विघटन, रंगहीन पदार्थ
रेटीनल और आप्सीन के रूप में हो जाता है,
लेकिन प्रकाश से अंधेरे में आने पर
रोडोप्सीन का तुरंत निर्माण हो जाता
है और एक क्षण से भी कम समय में सृष्टि
सामान्य हो जाती है। उक्त प्रक्रिया में
शामिल रेटीनल विटामिन ए का ही एक
प्रकार है अतः विटामिन ए की कमी हो
तो उजाले से अँधेरे में आने पर या कम प्रकाश
मे रोडोप्सीन का निर्माण नहीं हो
पाता और दिखाई नहीं देता। इस स्थिति
को रतौंधी कहते हैं।
क्यों होता है :-
=======
* अधिक समय तक दूषित, बासी भोजन कर,
पौष्टिक व वसायुक्त खाद्य पदार्थों का
अभाव होने से नेत्र ज्योति क्षीण होती है
और रात्रि के समय रोगी को धुंधला
दिखाई देने लगता है।
* आधुनिक परिवेश में रात्रि जागरण करने व
अधिक समय तक टेलीविजन देखने और
कम्प्यूटर पर काम करने से नेत्र ज्योति क्षीण
होती है और रात्रि के समय रोगी को
धुंधला दिखाई देने लगता है।
* आधुनिक परिवेश में युवा वर्ग में
शारीरिक सौंदर्य आकर्षण को विकसित
करने पर अधिक ध्यान देते हैं। ऐसे में वे शरीर के
विभिन्न अंगों के स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दे
पाते।
* ऐसे में नेत्रों को बहुत हानि पहुंचती है और
अधिकतर युवक-युवतियां रतौंधी रोग से
पीड़ित होते हैं। रतौंधी रोग में रात्रि
होने पर रोगी को स्पष्ट दिखाई नहीं
देता। यदि इस रोग की शीघ्र चिकित्सा
न कराई जाए तो रोगी नेत्रहीन हो
सकता है।
* जब यह रोग पुराना होने लगता है, तो
आँखों के बाल कड़े होने लगते हैं। आँखों की
पलकों पर छोटी-छोटी फुन्सियाँ व सूजन
दिखाई पड़ती हैं। इसके साथ ही दर्द भी
महसूस होने लगता है। ज्यादा लापरवाही
करने पर आँख की पुतली अपारदर्शी हो
जाती है और कभी कभी क्षतिग्रस्त भी
हो जाती है।
* रतौंधी की इस स्थिति के शिकार
ज्दायातर छोटे बच्चे होते हैं। अक्सर ऐसी
स्थिति के दौरान रोगी अन्धेपन का
शिकार हो जाता है। यह इलाज की
जटिल अवस्था होती है और एसी स्थिति
में औषधियों से इलाज भी बेअसर साबित
होता है।
* आयुर्वेद के पुराने ग्रंथों के मुताबिक
रतौंधी रोग के दो प्रकार होते हैं- एक तो
वह जिसमें कफ का क्षय होने लगता है और
दूसरा वह जिसमें कफ की वृद्धि होने लगती
है। पहले प्रकार के रतौंधी रोग की वजह
कुपोषण माना जाता है। सामान्य तौर से
कुपोषण से हुआ रतौंधी रोग ही देखने में
आता है।
* आयुर्वेदिक औषधियों से रतौंधी को
कंट्रोल करने के काफी अच्छे व उत्साहवर्धक
नतीजे देखने को मिलते हैं। आयुर्वेदिक दवाओं
द्वारा इसका सफल इलाज संभव है।
आँखों में लगाने वाली औषधियाँ:-
====================
* शंखनाभि, विभीतकी, हरड, पीपल,
काली मिर्च, कूट, मैनसिल, खुरासानी बच
ये सभी औषधियाँ समान मात्रा में लेकर
बारीक कूट-पीसकर कपड़छान चूर्ण बना लें।
इस चूर्ण को बकरी के दूध में मिलाकर
बत्तियाँ बना लें। दवा इतनी बारीक हो
कि बत्तियाँ खुरदरी न होने पाएँ। इन
बत्तियों को चकले या चिकने पत्थर पर
रोजाना रात को पानी में घिसकर आँखों
में लगाने से रतौंधी रोग ठीक हो जाता
है।
* चमेली के फूल, नीम की कोंपल (मुलायम
पत्ते), दोनों हल्दी और रसौत को गाय के
गोबर के रस में बारीक पीस कपड़े से छानकर
आँखों में लगाने से रतौंधी रोग दूर हो
जाता है।
* रीठे की गुठली को यदि स्त्री के दूध में
घिसकर आँखों में लगाएँ तो यह भी रतौंधी
में काफी फायदेमंद होता है।
की चीजें धुंधली दिखाई देने लगती हैं। रात
होने पर रोगी को पास की चीजें भी
दिखाई देती है। रोगी तेज रोशनी में ही
थोडा़-बहुत देख पाता है।रोगी बिना
चश्में के कुछ नहीं देख पाता। चश्में से भी
रोगी को बहुत धुंधला दिखाई देता है।
बल्ब के चारों और रोगी को किरणें फूटती
दिखाई देती हैं। धूल-मिट्टी व धुएं के
वातावरण से गुजरने पर धुंधलापन अधिक बढ़
जाता है।
# रतौंधी(रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा ) का
कारण :-
============================
* रोगी की आँखों की जाँच के दौरान
पता चलता है कि आँखों का कॉर्निया
(कनीनिका) सूख-सा गया है और आई बॉल
(नेत्र गोलक) धुँधला व मटमैला-सा दिखाई
देता है। उपतारा (आधरिस) महीन छिद्रों
से युक्त दिखता है तथा कॉर्निया के पीछे
तिकोनी सी आकृति नजर आती है। आँखों
से सफेद रंग का स्त्राव होता है।
* नेत्रों के भीतरी भाग में स्थित रेटिना
दो प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर
बना होता है। कुछ कोशिकाएँ छड़ की
आकार की और कुछ शंकु के आकार की
होती हैं। इन कोशिकाओं में जो रंग कण
होते हैं, वे प्रकाश के प्रति संवेदनशील होते
हैं। इन छड़ कोशिकाओं में रोडोप्सीन
नामक एक पदार्थ पाए जाते है जो कि एक
संयुग्मी प्रोटीन होता है, यह पदार्थ
आप्सीन नामक प्रोटीन और रेटीनल नामक
अप्रोटीन तत्वों से मिलकर बना होता है।
अधिक समय तक प्रकाश रहने पर
रोडोप्सीन का विघटन, रंगहीन पदार्थ
रेटीनल और आप्सीन के रूप में हो जाता है,
लेकिन प्रकाश से अंधेरे में आने पर
रोडोप्सीन का तुरंत निर्माण हो जाता
है और एक क्षण से भी कम समय में सृष्टि
सामान्य हो जाती है। उक्त प्रक्रिया में
शामिल रेटीनल विटामिन ए का ही एक
प्रकार है अतः विटामिन ए की कमी हो
तो उजाले से अँधेरे में आने पर या कम प्रकाश
मे रोडोप्सीन का निर्माण नहीं हो
पाता और दिखाई नहीं देता। इस स्थिति
को रतौंधी कहते हैं।
क्यों होता है :-
=======
* अधिक समय तक दूषित, बासी भोजन कर,
पौष्टिक व वसायुक्त खाद्य पदार्थों का
अभाव होने से नेत्र ज्योति क्षीण होती है
और रात्रि के समय रोगी को धुंधला
दिखाई देने लगता है।
* आधुनिक परिवेश में रात्रि जागरण करने व
अधिक समय तक टेलीविजन देखने और
कम्प्यूटर पर काम करने से नेत्र ज्योति क्षीण
होती है और रात्रि के समय रोगी को
धुंधला दिखाई देने लगता है।
* आधुनिक परिवेश में युवा वर्ग में
शारीरिक सौंदर्य आकर्षण को विकसित
करने पर अधिक ध्यान देते हैं। ऐसे में वे शरीर के
विभिन्न अंगों के स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दे
पाते।
* ऐसे में नेत्रों को बहुत हानि पहुंचती है और
अधिकतर युवक-युवतियां रतौंधी रोग से
पीड़ित होते हैं। रतौंधी रोग में रात्रि
होने पर रोगी को स्पष्ट दिखाई नहीं
देता। यदि इस रोग की शीघ्र चिकित्सा
न कराई जाए तो रोगी नेत्रहीन हो
सकता है।
* जब यह रोग पुराना होने लगता है, तो
आँखों के बाल कड़े होने लगते हैं। आँखों की
पलकों पर छोटी-छोटी फुन्सियाँ व सूजन
दिखाई पड़ती हैं। इसके साथ ही दर्द भी
महसूस होने लगता है। ज्यादा लापरवाही
करने पर आँख की पुतली अपारदर्शी हो
जाती है और कभी कभी क्षतिग्रस्त भी
हो जाती है।
* रतौंधी की इस स्थिति के शिकार
ज्दायातर छोटे बच्चे होते हैं। अक्सर ऐसी
स्थिति के दौरान रोगी अन्धेपन का
शिकार हो जाता है। यह इलाज की
जटिल अवस्था होती है और एसी स्थिति
में औषधियों से इलाज भी बेअसर साबित
होता है।
* आयुर्वेद के पुराने ग्रंथों के मुताबिक
रतौंधी रोग के दो प्रकार होते हैं- एक तो
वह जिसमें कफ का क्षय होने लगता है और
दूसरा वह जिसमें कफ की वृद्धि होने लगती
है। पहले प्रकार के रतौंधी रोग की वजह
कुपोषण माना जाता है। सामान्य तौर से
कुपोषण से हुआ रतौंधी रोग ही देखने में
आता है।
* आयुर्वेदिक औषधियों से रतौंधी को
कंट्रोल करने के काफी अच्छे व उत्साहवर्धक
नतीजे देखने को मिलते हैं। आयुर्वेदिक दवाओं
द्वारा इसका सफल इलाज संभव है।
आँखों में लगाने वाली औषधियाँ:-
====================
* शंखनाभि, विभीतकी, हरड, पीपल,
काली मिर्च, कूट, मैनसिल, खुरासानी बच
ये सभी औषधियाँ समान मात्रा में लेकर
बारीक कूट-पीसकर कपड़छान चूर्ण बना लें।
इस चूर्ण को बकरी के दूध में मिलाकर
बत्तियाँ बना लें। दवा इतनी बारीक हो
कि बत्तियाँ खुरदरी न होने पाएँ। इन
बत्तियों को चकले या चिकने पत्थर पर
रोजाना रात को पानी में घिसकर आँखों
में लगाने से रतौंधी रोग ठीक हो जाता
है।
* चमेली के फूल, नीम की कोंपल (मुलायम
पत्ते), दोनों हल्दी और रसौत को गाय के
गोबर के रस में बारीक पीस कपड़े से छानकर
आँखों में लगाने से रतौंधी रोग दूर हो
जाता है।
* रीठे की गुठली को यदि स्त्री के दूध में
घिसकर आँखों में लगाएँ तो यह भी रतौंधी
में काफी फायदेमंद होता है।