स्वरयोग
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योग के मुताबिक सांस को ही स्वर कहा गया है। स्वर मुख्यत: 3 प्रकार का होता है-
चंद्रस्वर
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जब नाक के बाईं तरफ के छिद्र से सांस चल रही हो तो उसको चंद्रस्वर कहा जाता है। यह शरीर को ठंडक पहुंचाता है। इस स्वर में तरल पदार्थ पीने चाहिए और ज्यादा मेहनत का काम नहीं करना चाहिए।
सूर्यस्वर
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जब नाक के दाईं तरफ के छिद्र से सांस चल रही हो तो उसे सूर्य स्वर कहा जाता है। यह स्वर शरीर को गर्मी देता है। इस स्वर में भोजन और ज्यादा मेहनत वाले काम करने चाहिए।
स्वर बदलने की विधि-
• नाक के जिस तरफ के छिद्र से स्वर चल रहा हो तो उसे दबाकर बंद करने से दूसरा स्वर चलने लगता है।
• जिस तरफ के नाक के छिद्र से स्वर चल रहा हो उसी तरफ करवट लेकर लेटने से दूसरा स्वर चलने लगता है।
• नाक के जिस तरफ के छिद्र से स्वर चलाना हो उससे दूसरी तरफ के छिद्र को रुई से बंद कर देना चाहिए।
• ज्यादा मेहनत करने से, दौड़ने से और प्राणायाम आदि करने से स्वर बदल जाता है। नाड़ी शोधन प्राणायाम करने से स्वर पर काबू हो जाता है। इससे सर्दियों में सर्दी कम लगती है और गर्मियों में गर्मी भी कम लगती है।
स्वर ज्ञान से लाभ-
• जो व्यक्ति स्वर को बार-बार बदलना पूरी तरह से सीख जाता है उसे जल्दी बुढ़ापा नहीं आता और वह लंबी उम्र भी जीता है।
• कोई भी रोग होने पर जो स्वर चलता हो उसे बदलने से जल्दी लाभ होता है।
• शरीर में थकान होने पर चंद्रस्वर (दाईं करवट) लेटने से थकान दूर हो जाती है।
• स्नायु रोग के कारण अगर शरीर में किसी भी तरह का दर्द हो तो स्वर को बदलने से दर्द दूर हो जाता है।
• दमे का दौरा पड़ने पर स्वर बदलने से दमे का दौरा कम हो जाता है। जिस व्यक्ति का दिन में बायां और रात में दायां स्वर चलता है वह हमेशा स्वस्थ रहता है।
• गर्भधारण के समय अगर पुरुष का दायां स्वर और स्त्री का बायां स्वर चले तो उस समय में गर्भधारण करने से निश्चय ही पुत्र पैदा होता है।
जानकारी-
प्रकृति शरीर की जरूरत के मुताबिक स्वरों को बदलती रहती है। अगर जरूरत हो तो स्वर बदला भी जा सकता है।
वाम स्वर
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जिस समय व्यक्ति का बाईं तरफ का स्वर चलता हो उस समय स्थिर, सौम्य और शांति वाला काम करने से वह काम पूरा हो जाता है जैसे- दोस्ती करना, भगवान के भजन करना, सजना-संवरना, किसी रोग की चिकित्सा शुरू करना, शादी करना, दान देना, हवन-यज्ञ करना, मकान आदि बनवाना शुरू करना, किसी यात्रा की शुरुआत करना, नई फसल के बीज बोना, पढ़ाई शुरू करना आदि।
दक्षिण स्वर
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जिस समय व्यक्ति का दाईं तरफ का स्वर चल रहा हो उस समय उसे काफी मुश्किल, गुस्से वाले और रुद्र कामों को करना चाहिए जैसे- किसी चीज की सवारी करना, लड़ाई में जाना, व्यायाम करना, पहाड़ पर चढ़ना, स्नान करना और भोजन करना आदि।
सुषुम्ना
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जिस समय नाक के दोनों छिद्रों से बराबर स्वर चलते हो तो इसे सुषुम्ना स्वर कहते हैं। उस समय मुक्त फल देने वाले कामों को करने से सिद्धि जल्दी मिल जाती है जैसे- धर्म वाले काम में भगवान का ध्यान लगाना तथा योग-साधना आदि करने चाहिए।
ध्यान रखें
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जो कार्य `चंद्र और `सूर्य´ नाड़ी में करने चाहिए उन्हें `सुषुम्ना´ के समय बिल्कुल भी न करें नहीं तो इसका उल्टा असर पड़ता है।
स्वर चलने का ज्ञान-
अगर कोई व्यक्ति जानना चाहता है कि किस समय कौन सा स्वर चल रहा है तो इसको जानने का तरीका बहुत आसान है। सबसे पहले नाक के एक छिद्र को बंद करके दूसरे छिद्र से 2-4 बार जोर-जोर से सांस लीजिए। फिर इस छिद्र को बंद करके उसी तरह से दूसरे छिद्र से 2-4 बार जोर-जोर से सांस लीजिए। नाक के जिस छिद्र से सांस लेने और छोड़ने में आसानी लग रही हो समझना चाहिए कि उस तरफ का स्वर चल रहा है और जिस तरफ से सांस लेने और छोड़ने में परेशानी हो उसे बंद समझना चाहिए।
इच्छा के मुताबिक स्वर बदलना
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इसकी 3 विधियां हैं-
स्वर बदलने की विधि-
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• नाक के जिस तरफ के छेद से सांस चल रही हो, उसके दूसरी तरफ के नाक के छिद्र को अंगूठे से दबाकर रखना चाहिए तथा जिस तरफ से सांस चल रही हो वहां से हवा को अंदर खींचना चाहिए। फिर उस तरफ के छिद्र को दबाकर नाक के दूसरे छिद्र से हवा को बाहर निकालना चाहिए। कुछ देर तक इसी तरह से नाक के एक छिद्र से सांस लेकर दूसरे से सांस निकालने से सांस की गति जरूर बदल जाती है।
• जिस तरफ के नाक के छिद्र से सांस चल रही हो उसी करवट सोकर नाक के एक छिद्र से सांस लेकर दूसरे से छोड़ने की क्रिया को करने से सांस की गति जल्दी बदल जाती है।
• नाक के जिस तरफ के छिद्र से सांस चल रही हो सिर्फ उसी करवट थोड़ी देर तक लेटने से भी सांस के चलने की गति बदल जाती है।
प्राणवायु को सुषुम्ना में संचारित करने की विधि :
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प्राणवायु को सुषुम्ना नाड़ी में जमा करने के लिए सबसे पहले नाक के किसी भी एक छिद्र को बंद करके दूसरे छिद्र से सांस लेने की क्रिया करें और फिर तुरंत ही बंद छिद्र को खोलकर दूसरे छिद्र से सांस को बाहर निकाल दीजिए। इसके बाद नाक के जिस तरफ के छिद्र से सांस छोड़ी हो, उसी से सांस लेकर दूसरे छिद्र से सांस को बाहर छोड़िये। इस तरह नाक के एक छिद्र से सांस लेकर दूसरे से सांस निकालने और फिर दूसरे से सांस लेकर पहले से छोड़ने से लगभग 50 बार में प्राणवायु का संचार `सुषुम्ना´ नाड़ी में जरूर हो जाएगा।
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योग के मुताबिक सांस को ही स्वर कहा गया है। स्वर मुख्यत: 3 प्रकार का होता है-
चंद्रस्वर
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जब नाक के बाईं तरफ के छिद्र से सांस चल रही हो तो उसको चंद्रस्वर कहा जाता है। यह शरीर को ठंडक पहुंचाता है। इस स्वर में तरल पदार्थ पीने चाहिए और ज्यादा मेहनत का काम नहीं करना चाहिए।
सूर्यस्वर
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जब नाक के दाईं तरफ के छिद्र से सांस चल रही हो तो उसे सूर्य स्वर कहा जाता है। यह स्वर शरीर को गर्मी देता है। इस स्वर में भोजन और ज्यादा मेहनत वाले काम करने चाहिए।
स्वर बदलने की विधि-
• नाक के जिस तरफ के छिद्र से स्वर चल रहा हो तो उसे दबाकर बंद करने से दूसरा स्वर चलने लगता है।
• जिस तरफ के नाक के छिद्र से स्वर चल रहा हो उसी तरफ करवट लेकर लेटने से दूसरा स्वर चलने लगता है।
• नाक के जिस तरफ के छिद्र से स्वर चलाना हो उससे दूसरी तरफ के छिद्र को रुई से बंद कर देना चाहिए।
• ज्यादा मेहनत करने से, दौड़ने से और प्राणायाम आदि करने से स्वर बदल जाता है। नाड़ी शोधन प्राणायाम करने से स्वर पर काबू हो जाता है। इससे सर्दियों में सर्दी कम लगती है और गर्मियों में गर्मी भी कम लगती है।
स्वर ज्ञान से लाभ-
• जो व्यक्ति स्वर को बार-बार बदलना पूरी तरह से सीख जाता है उसे जल्दी बुढ़ापा नहीं आता और वह लंबी उम्र भी जीता है।
• कोई भी रोग होने पर जो स्वर चलता हो उसे बदलने से जल्दी लाभ होता है।
• शरीर में थकान होने पर चंद्रस्वर (दाईं करवट) लेटने से थकान दूर हो जाती है।
• स्नायु रोग के कारण अगर शरीर में किसी भी तरह का दर्द हो तो स्वर को बदलने से दर्द दूर हो जाता है।
• दमे का दौरा पड़ने पर स्वर बदलने से दमे का दौरा कम हो जाता है। जिस व्यक्ति का दिन में बायां और रात में दायां स्वर चलता है वह हमेशा स्वस्थ रहता है।
• गर्भधारण के समय अगर पुरुष का दायां स्वर और स्त्री का बायां स्वर चले तो उस समय में गर्भधारण करने से निश्चय ही पुत्र पैदा होता है।
जानकारी-
प्रकृति शरीर की जरूरत के मुताबिक स्वरों को बदलती रहती है। अगर जरूरत हो तो स्वर बदला भी जा सकता है।
वाम स्वर
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जिस समय व्यक्ति का बाईं तरफ का स्वर चलता हो उस समय स्थिर, सौम्य और शांति वाला काम करने से वह काम पूरा हो जाता है जैसे- दोस्ती करना, भगवान के भजन करना, सजना-संवरना, किसी रोग की चिकित्सा शुरू करना, शादी करना, दान देना, हवन-यज्ञ करना, मकान आदि बनवाना शुरू करना, किसी यात्रा की शुरुआत करना, नई फसल के बीज बोना, पढ़ाई शुरू करना आदि।
दक्षिण स्वर
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जिस समय व्यक्ति का दाईं तरफ का स्वर चल रहा हो उस समय उसे काफी मुश्किल, गुस्से वाले और रुद्र कामों को करना चाहिए जैसे- किसी चीज की सवारी करना, लड़ाई में जाना, व्यायाम करना, पहाड़ पर चढ़ना, स्नान करना और भोजन करना आदि।
सुषुम्ना
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जिस समय नाक के दोनों छिद्रों से बराबर स्वर चलते हो तो इसे सुषुम्ना स्वर कहते हैं। उस समय मुक्त फल देने वाले कामों को करने से सिद्धि जल्दी मिल जाती है जैसे- धर्म वाले काम में भगवान का ध्यान लगाना तथा योग-साधना आदि करने चाहिए।
ध्यान रखें
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जो कार्य `चंद्र और `सूर्य´ नाड़ी में करने चाहिए उन्हें `सुषुम्ना´ के समय बिल्कुल भी न करें नहीं तो इसका उल्टा असर पड़ता है।
स्वर चलने का ज्ञान-
अगर कोई व्यक्ति जानना चाहता है कि किस समय कौन सा स्वर चल रहा है तो इसको जानने का तरीका बहुत आसान है। सबसे पहले नाक के एक छिद्र को बंद करके दूसरे छिद्र से 2-4 बार जोर-जोर से सांस लीजिए। फिर इस छिद्र को बंद करके उसी तरह से दूसरे छिद्र से 2-4 बार जोर-जोर से सांस लीजिए। नाक के जिस छिद्र से सांस लेने और छोड़ने में आसानी लग रही हो समझना चाहिए कि उस तरफ का स्वर चल रहा है और जिस तरफ से सांस लेने और छोड़ने में परेशानी हो उसे बंद समझना चाहिए।
इच्छा के मुताबिक स्वर बदलना
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इसकी 3 विधियां हैं-
स्वर बदलने की विधि-
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• नाक के जिस तरफ के छेद से सांस चल रही हो, उसके दूसरी तरफ के नाक के छिद्र को अंगूठे से दबाकर रखना चाहिए तथा जिस तरफ से सांस चल रही हो वहां से हवा को अंदर खींचना चाहिए। फिर उस तरफ के छिद्र को दबाकर नाक के दूसरे छिद्र से हवा को बाहर निकालना चाहिए। कुछ देर तक इसी तरह से नाक के एक छिद्र से सांस लेकर दूसरे से सांस निकालने से सांस की गति जरूर बदल जाती है।
• जिस तरफ के नाक के छिद्र से सांस चल रही हो उसी करवट सोकर नाक के एक छिद्र से सांस लेकर दूसरे से छोड़ने की क्रिया को करने से सांस की गति जल्दी बदल जाती है।
• नाक के जिस तरफ के छिद्र से सांस चल रही हो सिर्फ उसी करवट थोड़ी देर तक लेटने से भी सांस के चलने की गति बदल जाती है।
प्राणवायु को सुषुम्ना में संचारित करने की विधि :
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प्राणवायु को सुषुम्ना नाड़ी में जमा करने के लिए सबसे पहले नाक के किसी भी एक छिद्र को बंद करके दूसरे छिद्र से सांस लेने की क्रिया करें और फिर तुरंत ही बंद छिद्र को खोलकर दूसरे छिद्र से सांस को बाहर निकाल दीजिए। इसके बाद नाक के जिस तरफ के छिद्र से सांस छोड़ी हो, उसी से सांस लेकर दूसरे छिद्र से सांस को बाहर छोड़िये। इस तरह नाक के एक छिद्र से सांस लेकर दूसरे से सांस निकालने और फिर दूसरे से सांस लेकर पहले से छोड़ने से लगभग 50 बार में प्राणवायु का संचार `सुषुम्ना´ नाड़ी में जरूर हो जाएगा।